Lord Shiva: कैसे मिला भगवान शिव को तीसरा नेत्र जानिए प्रतीक

शिव के त्रिनेत्र का रहस्य

भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी कहा जाता है। उनका तीसरा नेत्र केवल एक शारीरिक विशेषता नहीं, बल्कि ज्ञान, तपस्या और विनाशक शक्ति का प्रतीक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवजी को यह तीसरा नेत्र कैसे प्राप्त हुआ? इस लेख में हम इसी पौराणिक रहस्य को उजागर करेंगे और समझेंगे कि शिव के तीनों नेत्र किन-किन गूढ़ अर्थों को दर्शाते हैं।

शिव के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति: पौराणिक कथा

कामदेव का अहंकार और शिव का क्रोध

पुराणों के अनुसार, एक बार देवताओं के राजा इंद्र ने कामदेव से प्रार्थना की कि वे भगवान शिव का ध्यान भंग करें। शिवजी सती की मृत्यु के बाद गहरी तपस्या में लीन थे, जबकि देवताओं को तारकासुर के अत्याचार से मुक्ति के लिए शिव-पुत्र की आवश्यकता थी।

कामदेव ने अपने मनोहर रूप और पुष्प बाणों का प्रयोग कर शिवजी के ध्यान को भंग करने का प्रयास किया। जैसे ही शिवजी का ध्यान टूटा, उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र को खोल दिया। इस नेत्र से निकली ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया।

तीसरा नेत्र क्यों खुला?

  • शिव का तीसरा नेत्र आंतरिक जागृति का प्रतीक है।
  • यह नेत्र मोह-माया को जलाकर सच्चे ज्ञान का मार्ग दिखाता है।
  • इस घटना के बाद कामदेव को अनंग (निराकार) कहा जाने लगा।

शिव के तीन नेत्रों का गहरा अर्थ

1. दायाँ नेत्र – सूर्य (प्रकाश और सृष्टि)

शिव का दायाँ नेत्र सूर्य का प्रतीक है, जो:

  • ज्ञान और चेतना का प्रकाश फैलाता है।
  • सृष्टि के नियमों को संचालित करता है।

2. बायाँ नेत्र – चंद्रमा (मन और शीतलता)

बायाँ नेत्र चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता है, जो:

  • मन की चंचलता को शांत करता है।
  • भक्ति और शीतलता का संदेश देता है।

3. तीसरा नेत्र – अग्नि (विनाश और पुनर्जन्म)

तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है, जो:

  • अज्ञानता को जलाकर ज्ञान देता है।
  • संहार करके नई सृष्टि का मार्ग प्रशस्त करता है।

तीसरे नेत्र से जुड़े रोचक तथ्य

  • शिवपुराण में कहा गया है कि तीसरा नेत्र “ज्ञानचक्षु” है, जो भक्त की अंतरात्मा को जगाता है।
  • जब शिवजी अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं, तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड उसकी ज्वाला में लीन हो जाता है।
  • इस नेत्र की शक्ति से ही गंगा को धारण करने की क्षमता मिली।

शिव के नेत्रों से जुड़े मंत्र और उनका महत्व

1. त्र्यम्बकम मंत्र

“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”

अर्थ: हम तीन नेत्रों वाले भगवान शिव की पूजा करते हैं, जो सुगंधित और समृद्धिदायक हैं। जैसे ककड़ी अपने बंधन से मुक्त होती है, वैसे ही हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त करो।

2. शिव तांडव स्तोत्र

इस स्तोत्र में शिव के तीसरे नेत्र की शक्ति का वर्णन है:
“ज्योतिर्लिंगं विभुं व्यापकं ब्रह्माण्डनायकम्।”

निष्कर्ष: त्रिनेत्र के पीछे छुपा आध्यात्मिक संदेश

भगवान शिव का तीसरा नेत्र हमें यह सिखाता है कि वास्तविक शक्ति बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि अंतरात्मा में छुपी होती है। जब हम अपने ज्ञानचक्षु को खोलते हैं, तो मोह-माया स्वतः ही नष्ट हो जाती है।

शिवजी के तीन नेत्र हमें याद दिलाते हैं कि सृष्टि, स्थिति और संहार – तीनों ही ईश्वर के अधीन हैं। उनकी कृपा से ही हमें सच्चा ज्ञान और मोक्ष प्राप्त होता है।

ॐ नमः शिवाय!

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