20 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष, जानें पूजा विधि और महत्व
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह वह पावन अवसर होता है जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और दान करते हैं। सन् 2025 में पूर्णिमा श्राद्ध 20 सितंबर से प्रारंभ होगा, जो 6 अक्टूबर तक चलेगा। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि इस वर्ष श्राद्ध कब-कब हैं, किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और कैसे करें पूजन विधि।
श्राद्ध 2025 की तिथियां और महत्व
पितृपक्ष के दौरान प्रत्येक दिन विशेष तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। नीचे दी गई तालिका में देखें पूर्ण तिथि-वार श्राद्ध कैलेंडर:
- 20 सितंबर 2025 – पूर्णिमा श्राद्ध
- 21 सितंबर 2025 – प्रतिपदा श्राद्ध
- 22 सितंबर 2025 – द्वितीया श्राद्ध
- 23 सितंबर 2025 – तृतीया श्राद्ध
- 24 सितंबर 2025 – चतुर्थी श्राद्ध
- 25 सितंबर 2025 – पंचमी श्राद्ध
- 26 सितंबर 2025 – षष्ठी श्राद्ध
- 27 सितंबर 2025 – सप्तमी श्राद्ध
- 28 सितंबर 2025 – अष्टमी श्राद्ध
- 29 सितंबर 2025 – नवमी श्राद्ध
- 30 सितंबर 2025 – दशमी श्राद्ध
- 1 अक्टूबर 2025 – एकादशी श्राद्ध
- 2 अक्टूबर 2025 – द्वादशी श्राद्ध
- 3 अक्टूबर 2025 – त्रयोदशी श्राद्ध
- 4 अक्टूबर 2025 – चतुर्दशी श्राद्ध
- 5 अक्टूबर 2025 – सर्वपितृ अमावस्या
- 6 अक्टूबर 2025 – महालया अमावस्या
क्यों मनाया जाता है पितृपक्ष?
पुराणों के अनुसार, जब महाभारत युद्ध में कर्ण की मृत्यु हुई तो उनकी आत्मा को स्वर्ग में सोने-चांदी के खजाने मिले, परंतु भोजन नहीं मिला। जब यह बात भगवान इंद्र को पता चली तो उन्होंने बताया कि कर्ण ने जीवनभर सोना दान किया पर अन्न दान नहीं किया। तब कर्ण को 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया जहां उन्होंने अन्न और जल दान कर पितरों को तृप्त किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
श्राद्ध करने की सही विधि
सुबह की तैयारी
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें
- साफ वस्त्र धारण करें (अधिमानतः सफेद या पीले रंग के)
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें
- हाथ में कुशा (दर्भ घास) और जल लेकर संकल्प लें
तर्पण की विधि
तर्पण के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें:
“ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय। ॐ शांति: शांति: शांति:॥”
- अपने दाएं हाथ की अंजुली से जल अर्पित करें
- तिल, जौ, चावल और फूल मिलाकर जल दें
- तीन बार पितरों का नाम लेकर तर्पण करें
ब्राह्मण भोज
श्राद्ध कर्म में ब्राह्मण भोज का विशेष महत्व है। ध्यान रखें:
- भोजन में चावल, दाल, सब्जी, दही और खीर अवश्य शामिल करें
- भोजन के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा और वस्त्र दान करें
- कौए, गाय और कुत्ते के लिए भी भोजन निकालें
श्राद्ध में किन बातों का रखें ध्यान?
क्या करें
- पितृ तिथि के दिन ही श्राद्ध करें
- कुशा की आसनी पर बैठकर ही कर्मकांड करें
- पितरों का पसंदीदा भोजन बनाएं
- गंगाजल का उपयोग अवश्य करें
क्या न करें
- श्राद्ध के दिन प्याज-लहसुन का सेवन न करें
- किसी का अपमान या झगड़ा न करें
- लोहे के बर्तन में भोजन न परोसें
- श्राद्ध कर्म में हड़बड़ी न करें
पितृपक्ष के विशेष दिन
महाभरणी श्राद्ध (27 सितंबर 2025)
यह दिन उन पितरों के लिए विशेष होता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। इस दिन विशेष पिंडदान और रुद्राभिषेक करने का विधान है।
सर्वपितृ अमावस्या (5 अक्टूबर 2025)
जिन्हें पितरों की तिथि याद नहीं, वे इस दिन श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन गया जी और प्रयागराज में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है।
श्राद्ध का आध्यात्मिक महत्व
गरुण पुराण में कहा गया है कि “पितृऋण से मुक्ति पाए बिना मोक्ष संभव नहीं”। श्राद्ध कर्म से:
- पितरों की आत्मा को शांति मिलती है
- कुल परंपरा का निर्वाह होता है
- परिवार में सुख-समृद्धि आती है
- आने वाली पीढ़ियों को आशीर्वाद मिलता है
पितृपक्ष हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ने का एक सुनहरा अवसर है। 20 सितंबर 2025 से शुरू हो रहे इस पितृपक्ष में हम सभी को अपने पितरों का स्मरण करते हुए उनके प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। याद रखें, श्राद्ध में श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण है – छोटा हो या बड़ा, पूरे मन से किया गया हर तर्पण आपके पितरों तक अवश्य पहुंचता है।
आशा है यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। श्राद्ध से जुड़ा कोई भी प्रश्न हो तो टिप्पणी में अवश्य पूछें। हमारे साथ जुड़े रहने के लिए धन्यवाद!
